//अष्ट्म दृश्य //
श्री रामकृष्ण देव अब अपनी नरलीला का संवरण करने के लिए तैयार हो रहे थे। इस समय नरेन्द्र को बिलकुल दूर नहीं जाने देते, सदा पास बैठाकर जीवकल्याणरुपी कार्य के सम्बन्ध में गूढ़ आदेश-उपदेश देते और एकान्त में कितनी ही चर्चाएँ करते। नरेन्द्र पर वे अपने असमाप्त कार्य का भार सौंपने जा रहे थे।
एक दिन श्री राम कृष्ण ने एक कागज के टुकड़े पर लिखा- नरेन्द्र लोक शिक्षा देगा। नरेन्द्र को उन्होंने इस प्रकार अधिकार प्रदान कियां। नरेन्द्र ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “मुझसे वह सब नहीं होगा।“श्री राम कृष्ण ने तत्क्षण दृढ़ स्वर से उत्तर दिया, “तेरी हड्डियों से होगा।“श्री राम कृष्ण ही नरेन्द्र के अन्तर में ‘बहुजनहित’ की शुभकामना जागृत कर उनके मन को जीवभूमि पर उतार लाए थे और मानो उनकी गरदन पकड़कर जोर से काम करा लेना चाहते थे। विश्वास-अविश्वास, नाना प्रकार के दु:ख-कष्ट और संघातों के भीतर से ले जाते हुए श्री राम कृष्ण ने अपने हाथों नरेन्द्र से विवेकानन्द गढ़ा था। विवेकानन्द श्री राम कृष्ण की अमोघ इच्छा शक्ति के यन्त्र स्वरुप थे। विश्ववासियों के समीप उन्होंने वेदमूर्ति श्री राम कृष्ण के सन्देश का ही प्रचार किया।
श्री राम कृष्ण किसी विशिष्ट देश, जाति या धर्म के लिए नहीं आए थे, वे आये थे सनातन वैदिक धर्म कि नवीनतम अभिव्यक्ति के रुप में- विश्व धर्म के प्रतीक के रुप में। इस परम सत्य को संसार के समक्ष प्रकट करना आवश्यक था। स्वामी विवेकानन्द ने उसे पूरा किया।
श्री अरविन्द ने एक स्थान पर लिखा है- “जो पूर्ण थे, जो युग प्रवर्तक थे, जो अवतारों के समष्टि स्वरूप थे,......उन्होने भावी भारत के प्रतिनिधि को अपने सम्मुख बिठाकर गठित किया। भावी भारत के ये प्रतिनिधि हैं स्वामी विवेकानन्द।..... विवेकानन्द का देश प्रेम, उनके पूजनीय गुरूदेव का ही दान है। श्री राम कृष्ण जानते थे कि वे उनके भीतर जिस शक्ति का संचार किये जा रहे हैं, काल क्रम से उसकी विकसित छ्टा से प्रखर सूर्य के रश्मि पुंज की भाँति समस्त देश जगमगा उठेगा।“
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