Thursday, February 17, 2011

स्वामी विवेकानन्द


//दशम दृश्य //
     भारत भ्रमण करते हुए स्वामी जी देश की अन्तिम सीमा पर स्थित कन्याकुमारी के मन्दिर में आए। देवी को साष्टांग प्राणिपात करते हुए उन्होंने कहा,माँ! मैं मुक्ति नहीं चाहता। तुम्हारी सेवा ही मेरे जीवन का एक मात्र व्रत है। समुन्दर जल में एक शिलाखण्ड पर बैठ्कर वे गहन ध्यान में मगन हो गए। इस ध्यान में उन्हें एक नया प्रकाश दिखाई दिया, पथ का पता मिला। उन्होंने अपने अन्तर में श्री राम कृष्ण का कण्ठ स्वर सुना। तब उन्होंने लाखों दुखी भारत वासियों के प्रतिनिधि के रूप में पाश्चात्य देशों में जाने का संकल्प किया, क्योंकि वहाँ जाकर उन्हें भारत के प्रति पाश्चात्य देश वासियों की दृष्टि आकर्षित करनी थी, विश्वबन्धुत्व का सन्देश प्रचारित करना था, निद्रित मानवात्मा को प्रबोधित करना था, भारत के दुख-दैन्य के अवसान के लिए प्रयत्न करना था।
      स्वामी विवेकानन्द 31-5-1893 को विदेश के लिए चल पड़े और 15 जुलाई 1893 को अमेरिका के प्रख्यात महानगर शिकागो पहुँच गए।


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