Wednesday, February 2, 2011

स्वामी विवेकानन्द द्वितीय दृश्य


// द्वितीय दृश्य //
कुछ मित्रों को साथ लेकर सुरेन्द्र नाथ के साथ नरेन्द्र का दक्षिणेश्वर पहुचंना । राम कृष्ण ने नरेन्द्र को बड़े भाव से बैठ्ने को कहा और गाने को भी कहा ।

                नरेन्द्र ने बड़े भाव और भक्ति से गाया:-
1.      `मन चलो निज निकेतने।
   संसार-विदेशै, विदेशीर वेशे, भ्रमो केनो अकारणे॥
2.      जाबे कि हे दिन आमार विफले चलिये।
छि नाथ दिवानिशि आशापथ निरखिये॥
नरेन्द्र के भाव पूर्ण मधुर स्वर की गुंजार से राम कृष्ण अपने आपको सम्भाल न सके। भाव मुग्ध हो फिर समाधि में चले गये।
समाधि से स्वस्थ होने पर:-
भगवान को कभी देखा जा सकता है या नहीं- इस प्रसंग में राम कृष्ण ने
आशा भरे  शब्दों में कहा, हाँ जी, उन्हें देखा जा सकता है। मैं जैसे तुम्हें देख रहा हूँ,
तुमसे बातचीत कर रहा हूँ , थीक वैसे ही- बल्कि उससे भी तीव्रता से ईश्वर को देखा जा सकता है, उनसे वार्तालाप किया जा सकता है।किन्तु भला यह करना कौन चाह्ता है ? लोग स्त्री-पुत्रों के लिए शोक से लोटा-    लोटा भर आँसू बहाते हैं, विषय-सम्पत्ति, धनदौलत के
लिए कितना रोते हैं, पर भला बताओ तो, भगवान्-लाभ नहीं हुआ इसलिए कौन रोत है? उनका लाभ नहीं हुआ इस दु:ख से यदि कोइ रो-रोकर उन्हें पुकारे, तो उसे वे निश्चित ही दर्शन देते हैं।

1 comment:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना, सुशील जी आप सेटिंग मे जा कर ब्लाग का नाम बदल ले, या मुझे अपना आई डी ना० ओर कोड भेज दे मै इस मे कुछ सुधार कर देता हुं बाद मे आप कोड बदल ले, ओर खुब लिखे, जब आप का ब्लाग सही हो जायेगा तो मै आप की जानपहचान सब से करवा दुंगा