Friday, February 4, 2011

स्वामी विवेकानन्द चतुर्थ दृश्य


// चतुर्थ दृश्य //
                     एक दिन दक्षिणेश्वर में श्रीरामकृष्ण के कक्ष में केशवचन्द्र सेन, विजयकृष्ण गोस्वामी आदि लब्धप्रतिष्ठ ब्राह्म नेतागण उपस्थित थे। कई भक्तगण भी उपस्थित थे। काफी देर भगवत् प्रसंग हुआ। केशवचन्द्र सेन, विजयकृष्ण गोस्वामी आदि के विदा ले कर चले जाने पर श्रीरामकृष्ण ने स्नेहपूर्वक नरेन्द्र की ओर ताकते हुए कहा- देखा, जिस शिक्तिविशेष के उत्कर्ष से केशव जगद्विख्यात बना है, वैसी अठारह शक्तियाँ नरेन्द्र के भीतर पूर्ण मात्रा में विद्यमान हैं।
            स्वामी जी ने स्वयं कहा था- यदि और एक विवेकानन्द होता तो वह समझ सकता कि यह विवेकानन्द क्या कर गया। उन्होंने और भी कहा था-“.....मैं जो दे गया, वह डेढ़ हजार वर्ष की खुराक है।
                    

// टिप्पणी  //
    विश्व्वासियों के विचार-जगत् के लिए वे डेढ़ हजार वर्ष की खुराक दे गए। संसार के
कल्याण के लिए,विश्वशान्ति के लिए स्वामीजी जो साम्य, मैत्री, स्वाधीनता, विश्वबन्धुत्व, विश्वमानवता आदि का भाव दे गए एवं सर्वतोपरि जो अपूर्व आध्यात्मिक भाव राशि प्रदान कर गये। वह सब अब धीरे धीरे भिन्न भिन्न माध्यमों के द्वारा कार्यान्वित हो रहा है। स्वामी जी की अमोघ भाव धारा आज समस्त संसार के विचारशील व्यक्तियों को प्रेरणा-उद्दीपना दे रही है। वे भावरुप में जाग्रत रहकर शतशत प्राणों में अनुप्रेरणा जगा दे रहे हैं।
             

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